Tuesday, 3 February 2009

अमूल्य संदेश













मानाव जीवन है जटिल बड़ा।
तनावों का ,
तकलीफों का ,
भंडार इसमें भरा पड़ा ।
इस निरंकुश जाति का
एक अंग मैं भी,
अकारण एकान्तता में ढल गई ।
व्याप्त हलचल थी चहु दिशा ,
चिंतित यह मन था मौन धरा ,
निराशा और दिशाहीनता से ग्रस्त ,
खड़ी थी देख प्रकृति की वेला ।

क्षण पहले जो प्रकाश भरा ,
काली बदरा से अब घिरा ;
क्षणभंगूर उस अंधेर नगरी बीच ,
खिंची थी रोशनी की एक लकीर ।
एकाग्र चित्त से जब विचारा,
संदेश माई का मन ने स्वीकारा -
" काले बादल हैं
जीवन की कठिनाई सम ,
रोशनी की लकीर है आशा ।
नर तू कर्तव्य पथ पर बढ़ता चल ,
रह परिणाम से सदा निश्चिंत ;
दूर कहीं तुझ वास्ते ,
भव्य राह -
हो रही है रचित । "


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